:--Andhkaar se prakaash ki Dishaa kaa Mantra --‘#नशा मुक्त भारत’
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- तिलक रेलन आज़ाद वरिष्ठ पत्रकार,
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स्वपरिचय:
स्वपरिचय: जन्म से ही परिजनों से सीखा 'अथक संघर्ष' तीसरी पीडी भी उसी राह पर!
तिलक रेलन
जब मेरे पिताजी की आयु 10वर्ष की थी तो दादा नहीं रहे,17वर्ष की आयु में घर छूट गया.कैसे घर परिवार 2-2)चले? पढ़े 2-MALLB,सरकारी नौकरी पाई(बाबु से अधिकारी बने)सेवामुक्त हुए,पल्ले खाली,न्याय हेतु संघर्षरत रहे!माँ की भूमिका आजभी याद आती है.संघर्ष से जर्जर शरीर ने दुर्घटना से टूटी रीड़ को सम्भलने न दिया.और मई 1995 बस यादें रह गयी.वह स्मरण कर आज लिखते आंसू नहीं रुकते.माँ,हमारी प्रथम गुरु,'अनवरतसंघर्ष ही जीवन है'सिखा गई.तभी तो जीवनसंग्राम का आनंद ले पाया हूँ.अपने ही नहीं समाज के लिए भी लड़ने का साहस जुटाया है.बच्चे भी अपने रणक्षेत्र में जूझ रहे हैं.तिलक संपादक युगदर्पण-9911111611,9911145678, 9540007993.