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#‘नशा मुक्त भारत’

'ड्रग्स' व्यसन  का '3डी' असर, PM मोदी  बोले-  'मन की बात', ... #‘नशा मुक्त भारत’ युदस नदि : प्रधानमंत्री नरेंद्र...

chetna ke do AyAm

Rashtra ke gaurav aur vyaktiyon ki urja nashta hone se bachana . Ek or aitihasik tathyon ko todmarod kar bhramit karne va logon ko durvyasanon /vyadhion ka shikar banane ke kuchakra samjhen /unse mukti payen."NASHAA"--Desh ki Urjaa v Samarth ko nashta karneke kuchakra kaa hi Naam hai.Bhaarat ko Arth v Bal se khokhlaa karneke Kuchakra mein lage tatva ise phailaa rahe hain.FFC v Nashekaa ApraadhJagat se gehraa sambandh hai.Kuchakra Kusanga Vikruti Bigaarhaa,

Yahee Raashtrake Shatru Hamaaraa. Nasheki latase Gharko Ujaarhaa, Ab bhee chetyen,Phailey Ujiyaaraa. Feelfree to Comment on/follow/subsc.blogs, Email/Chat-yugdarpanh on Yahoo/Ggl, contact Tilak Editor YugDarpan 09911111611, 09911145678,09654675533

YDMS चर्चा समूह

dm

: : : युगदर्पण का सार्थक दीपावली सन्देश:: : सार्थक दीपावली का अर्थ ? दशहरा यदि सत्य का असत्य पर विजय का प्रतीक है, तो दीपावली प्रकाश का अन्धकार पर। आइयें, इस के लिये संकल्प लें।: : : भ्रम के जाल को तोड़, अज्ञान के अंधकार को मिटा कर, ज्ञान का प्रकाश फेलाएं। आइये, बिकाऊ मीडिया द्वारा समाज को भटकने से रोकें, जागते रहो, जगाते रहो ।।: : : यह दीपावली भारतीय जीवन से आतंकवाद, अवसरवाद, महंगाई, भ्रष्टाचार आदि की अमावस में, सत्य का दीपक जला कर धर्म व सत्य का प्रकाश फैलाये तथा भारत को सोने की चिड़िया का खोया, वैभव पुन: प्राप्त हो ! अखिल विश्व में फैले सम्पूर्ण हिन्दू समाज के आप सभी को सपरिवार, युगदर्पण परिवार की ओर से दीपावली की ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं।: : : पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है -युगदर्पण मीडिया समूह YDMS. तिलक रेलन 9911111611 ... yugdarpan.com धन्यवाद: :

बिकाऊ मीडिया -व हमारा भविष्य

: : : क्या आप मानते हैं कि अपराध का महिमामंडन करते अश्लील, नकारात्मक 40 पृष्ठ के रद्दी समाचार; जिन्हे शीर्षक देख रद्दी में डाला जाता है। हमारी सोच, पठनीयता, चरित्र, चिंतन सहित भविष्य को नकारात्मकता देते हैं। फिर उसे केवल इसलिए लिया जाये, कि 40 पृष्ठ की रद्दी से क्रय मूल्य निकल आयेगा ? कभी इसका विचार किया है कि यह सब इस देश या हमारा अपना भविष्य रद्दी करता है? इसका एक ही विकल्प -सार्थक, सटीक, सुघड़, सुस्पष्ट व सकारात्मक राष्ट्रवादी मीडिया, YDMS, आइयें, इस के लिये संकल्प लें: शर्मनिरपेक्ष मैकालेवादी बिकाऊ मीडिया द्वारा समाज को भटकने से रोकें; जागते रहो, जगाते रहो।।: : नकारात्मक मीडिया के सकारात्मक विकल्प का सार्थक संकल्प - (विविध विषयों के 28 ब्लाग, 5 चेनल व अन्य सूत्र) की एक वैश्विक पहचान है। आप चाहें तो आप भी बन सकते हैं, इसके समर्थक, योगदानकर्ता, प्रचारक,Be a member -Supporter, contributor, promotional Team, युगदर्पण मीडिया समूह संपादक - तिलक.धन्यवाद YDMS. 9911111611: :

Monday, January 17, 2011

श्रीमद्भगवद्गीता में समता की अवधारणा -----------------------------विश्व मोहन तिवारी, एयर वाइस मार्शल, (से. नि.)

समता शब्द तो आज की राजनीति में और सामाजिक सोचविचारों में बहुत ही चर्चित है। समता की अवधारणा हमारे यहां उतनी ही पुरानी है जितना कि ब्रह्म ज्ञान। यहूदी, ईसाई तथा इस्लाम धर्मों में समता केवल क्रमश: यहूदियों, ईसाइयों तथा मुस्लिमों के लिये है अन्य तो पापी हैं और उनका मोक्ष तब तक नहीं हो सकता कि जब तक वे अपना धर्म बदलकर इन धर्मों में‌ न आ जाएं। अर्थात एक ईसाई के लिये मुस्लिम के साथ या एक मुस्लिम के लिये ईसाई के साथ समता नहीं हो सकती। यहां तक कि इन धर्मों में स्त्रियों की समता भी पुरुषों के साथ नहीं हो सकती। तभी तो स्त्री स्वातंत्र्य का आन्दोलन पश्चिम में १७९० के लगभग प्रारंभ हुआ था, और इस्लाम में तो आज भी ऐसा आन्दोलन छिट पुट ही है।

ब्रह्मज्ञान की चर्चा तो ऋषि उपनिषद काल अर्थात ईसा से लगभग ३५०० वर्ष पूर्व में करते हैं । याज्ञवल्क्य जो राजा जनक के समकालीन हैं, अर्थात महाभारत के लगभग ५०० वर्ष पहले के हैं, की पत्नी गार्गी उनसे ब्रह्म ज्ञान की शिक्षा लेती हैं, और एक अन्य गार्गी उनसे राजा जनक की सभा में शास्त्रार्थ करती हैं। यह तो हुई आदर्श की‌ बात। संसार में एक अल्पसंख्या में लोग हमेशा अनैतिक व्यवहार करते आये हैं, किन्तु उनका विरोध भी हुआ है। यह भी सत्य है कि मुसलमानों के आक्रमण के बाद हमारा सांस्कृतिक पतन होता है और हमारे समाज में अन्य बुराइयों के साथ यह बुराई भी आ जाती है।

श्रीमद्भगवद्गीता में समता पर विस्तृत चर्चा है। ब्रह्मज्ञानी के लिये न केवल स्त्री पुरुष के बीच समता है वरन सभी प्राणियों के बीच समता है -

विद्या विनय सम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि। शुनि चैव श्वपाके च पण्डिता: समदर्शिन:।।(.१८)

पण्डित तो ब्राह्मणों, गायों, हाथियों, कुत्तों और चाण्डालों में समता ही देखते हैं। सभी प्राणियों के साथ यथा स्थिति, यथा समय और यथा योग्य व्यवहार करना व्यवहार में समता होती है। इस समता के व्यवहार का उद्गम कोई अमूर्त उदात्त कल्पना नहीं है वरन पण्डित को वह अनुभूति समाधि की स्थिति में होती है, वही याथार्थिक सत्य है। उस सामाधिक अनुभूति का व्यवहार में ढालना उपरोक्त श्लोक में वर्णित है। ६.९ वें श्लोक में पुन: इस धारणा की पुष्टि की गई है। और ६.३२ वें श्लोक में अपने शरीर के अंगों को हम जिस तरह समान भाव से देखते हैं उसी तरह से सभी प्राणियों को अपने समान देखना समता है।

श्रीमद्भगवद्गीता में समता शब्द का उपयोग सर्वप्रथम २.१५ वें श्लोक में आता है -

यं हि व्यथयंत्येते पुरुषं पुरुषर्षभ।समदु:खसुखं धीरं सो-मॄतत्वाय कल्पते ।।

सुख और दु:ख में समता अनुभूति करने वाले धीर पुरुष को जीवनमुक्ति प्राप्त हो जाती है। अर्थात धीर पुरुष न तो सुख से विचलित होता और उसकी कामना भी नहीं करता तथा दु:ख आने पर उससे भी विचलित नहीं होता। इस तरह हम देखेंगे कि समता का मूल अर्थ है मन का 'अचंचल' अर्थात स्थिर रहना, विचारों तथा भावनाओं दोनों प्रकार की वृतियों से। किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि ऐसा व्यक्ति पत्थर के समान हो गया। वह प्रतिक्रिया तो अवश्य करेगा और अत्यंत बुद्धि संगत प्रतिक्रिया करेगा न कि भावावेश में आकर कोई हानिकारक कार्य कर बैठेगा और फ़िर पछताएगा। गीता में‌ ही कहा है कि क्रोध से मनुष्य मोहित हो जाता है, उसकी समृति विकृत हो जाती‌है और फ़िर बुद्धि काम नहीं करती, अर्थात वह एक जानवर के समान कार्य करता है।

.३८ वें श्लोक में समता के अर्थ का और विस्तार होता है। यहां अब सुख दु:ख के साथ लाभ तथा हानि में और जय तथा पराजय में भी समता की अनुभूति की बात है। ऐसी अनुभूति के साथ युद्ध करने में पाप नहीं पड़ेगा; क्योंकि अर्जुन का उस धर्मयुद्ध से विमुख होने में एक कारण हत्याओं के पाप का भी था। अपना कर्तव्य पूरी क्षमता तथा योग्यता के साथ करना है, किन्तु बिना किसी कामना के। २.४८वें श्लोक में इसके विस्तार में सिद्धि और असिद्धि भी आ जाती है और तब वह योग की बराबरी कर लेता है - 'समत्व योग'। अर्थात इस योग के द्वारा जीवन मुक्ति प्राप्त होने की संपुष्टि श्रीमद्भगवद्गीता कर रही हैं। और ४.२२ वें श्लोक में समझाया गया है कि सिद्धि और असिद्धि में समता रखने से वह व्यक्ति कर्मों के फ़लों से नहीं बँधता। यही‌ बँधना तो दु;ख और सुख का और पाप का कारण है। यदि सफ़लता मिल गई तो वह भी मन में वासना के रूप में स्थापित हो गई और एक और अनावश्यक, वरन हानिकारक, बोझ बन गई। और यदि घटना से सीखा और उसे भूले, मन साफ़ हुआ और आगे के निर्णय भी उसी काल के लिये उपयुक्त, न कि मृत तथा क्षुद्र स्मृति के बोझ से दबे रहें।

.१८वें श्लोक पर चर्चा तो हमने प्रारंभ में की थी। ५.१९ वें श्लोक में तो समता का इतना विस्तार होता है समता में स्थित व्यक्ति तो संसार पर ही विजय प्राप्त का लेता है। अर्थात संसार की घटनाएं उस पर प्रभाव नहीं डाल सकतीं, अब तो वह ब्रह्म में स्थित होकर ब्रह्म के समान निर्दोष हो गया है। अतएव ब्रह्म की साधना के लिये समता का भाव लाना साधना एक लिये बहुत सहायक होता है। वैसे यह दोनों परस्पर अन्योन्याश्रित हैं, एक से दूसरे के इये सहायता मिलती है। उसकी दृष्टि में जब सभी उसी‌ ब्रह्म के ही रुप हैं, तब वह जो भी‌ कार्य करेगा न्यायोचित ही होगा। ६.२९ वें श्लोक में‌ भी इसी समदर्शिता की पुष्टि की गई है।

उपरोक्त समता की अवधारणा और प्रभाव किसी भी साधक के लिये उपयोगी हो सकते हैं। उसके धर्म, रंग जाति आदि से इसका कोई विरोध नहीं है; हो भी कैसे सकता है जो सभी प्राणियों में एकत्व देख रहा हो उसके लिये यह वस्त्र के समान भेद कोई अर्थ नहीं रखते।

Saturday, September 11, 2010

आत्मग्लानी नहीं स्वगौरव का भाव जगाएं, विश्वगुरु

आत्मग्लानी नहीं स्वगौरव का भाव जगाएं, विश्वगुरु  मैकाले व वामपंथियों से प्रभावित कुशिक्षा से पीड़ित समाज का एक वर्ग, जिसे देश की श्रेष्ठ संस्कृति, आदर्श, मान्यताएं, परम्पराएँ, संस्कारों का ज्ञान नहीं है अथवा स्वीकारने की नहीं नकारने की शिक्षा में पाले होने से असहजता का अनुभव होता है! उनकी हर बात आत्मग्लानी की ही होती है! स्वगौरव की बात को काटना उनकी प्रवृति बन चुकी है! उनका विकास स्वार्थ परक भौतिक विकास है, समाज शक्ति का उसमें कोई स्थान नहीं है! देश की श्रेष्ठ संस्कृति, परम्परा व स्वगौरव की बात उन्हें समझ नहीं आती! 
 किसी सुन्दर चित्र पर कोई गन्दगी या कीचड़ के छींटे पड़ जाएँ तो उस चित्र का क्या दोष? हमारी सभ्यता  "विश्व के मानव ही नहीं चर अचर से,प्रकृति व सृष्टि के कण कण से प्यार " सिखाती है..असभ्यता के प्रदुषण से प्रदूषित हो गई है, शोधित होने के बाद फिर चमकेगी, किन्तु हमारे दुष्ट स्वार्थी नेता उसे और प्रदूषित करने में लगे हैं, देश को बेचा जा रहा है, घोर संकट की घडी है, आत्मग्लानी का भाव हमे इस संकट से उबरने नहीं देगा. मैकाले व वामपंथियों ने इस देश को आत्मग्लानी ही दी है, हम उसका अनुसरण नहीं निराकरण करें, देश सुधार की पहली शर्त यही है, देश भक्ति भी यही है !
भारत जब विश्वगुरु की शक्ति जागृत करेगा, विश्व का कल्याण हो जायेगा !

Monday, May 17, 2010

पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है-युगदर्पण

Wednesday, April 14, 2010

चन्दन तरुषु भुजन्गा
जलेषु कमलानि तत्र च ग्राहाः
गुणघातिनश्च भोगे
खला न च सुखान्य विघ्नानि
Meaning:
We always find snakes and vipers on the trunks of sandal wood trees, we also find crocodiles in the same pond which contains beautiful lotuses. So it is not easy for the good people to lead a happy life without any interference of barriers called sorrows and dangers. So enjoy life as you get it.
Courtesy: रामकृष्ण प्रभा (धूप-छाँव)
विश्व गुरु भारत की पुकार:-
विश्व गुरु भारत विश्व कल्याण हेतु नेतृत्व करने में सक्षम हो ?
इसके लिए विश्व गुरु की सर्वांगीण शक्तियां जागृत हों ! इस निमित्त आवश्यक है अंतरताने के नकारात्मक उपयोग से बड़ते अंधकार का शमन हो, जिस से समाज की सात्विक शक्तियां उभारें तथा विश्व गुरु प्रकट हो! जब मीडिया के सभी क्षेत्रों में अनैतिकता, अपराध, अज्ञानता व भ्रम का अन्धकार फ़ैलाने व उसकी समर्थक / बिकाऊ प्रवृति ने उसे व उससे प्रभावित समूह को अपने ध्येय से भटका दिया है! दूसरी ओर सात्विक शक्तियां लुप्त /सुप्त /बिखरी हुई हैं, जिन्हें प्रकट व एकत्रित कर एक महाशक्ति का उदय हो जाये तो असुरों का मर्दन हो सकता है! यदि जगत जननी, राष्ट्र जननी व माता के सपूत खड़े हो जाएँ, तो यह असंभव भी नहीं है,कठिन भले हो! इसी विश्वास पर, नवरात्रों की प्रेरणा से आइये हम सभी इसे अपना ध्येय बनायें और जुट जाएँ ! तो सत्य की विजय अवश्यम्भावी है! श्रेष्ठ जनों / ब्लाग को उत्तम मंच सुलभ करने का एक प्रयास है जो आपके सहयोग से ही सार्थक /सफल होगा !
अंतरताने का सदुपयोग करते युगदर्पण समूह की ब्लाग श्रृंखला के 25 विविध ब्लाग विशेष सूत्र एवम ध्येय लेकर blogspot.com पर बनाये गए हैं! साथ ही जो श्रेष्ठ ब्लाग चल रहे हैं उन्हें सर्वश्रेष्ठ मंच देने हेतु एक उत्तम संकलक /aggregator है deshkimitti.feedcluster.com ! इनके ध्येयसूत्र / सार व मूलमंत्र से आपको अवगत कराया जा सके; इस निमित्त आपको इनका परिचय देने के क्रम का शुभारंभ (भाग--1) युवादर्पण से किया था,अब (भाग 2,व 3) जीवन मेला व् सत्य दर्पण से परिचय करते हैं: -
2)जीवनमेला:--कहीं रेला कहीं ठेला, संघर्ष और झमेला कभी रेल सा दौड़ता है यह जीवन.कहीं ठेलना पड़ता. रंग कुछ भी हो हंसते या रोते हुए जैसे भी जियो,फिर भी यह जीवन है.सप्तरंगी जीवन के विविध रंग,उतार चढाव, नीतिओं विसंगतियों के साथ दार्शनिकता व यथार्थ जीवन संघर्ष के आनंद का मेला है- जीवन मेला दर्पण.तिलक..(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpanh पर इमेल/चैट करें,संपर्कसूत्र-तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611,09911145678,09540007993.
3)सत्यदर्पण:- कलयुग का झूठ सफ़ेद, सत्य काला क्यों हो गया है ?
-गोरे अंग्रेज़ गए काले अंग्रेज़ रह गए! जो उनके राज में न हो सका पूरा,मैकाले के उस अधूरे को 60 वर्ष में पूरा करेंगे उसके साले! विश्व की सर्वश्रेष्ठ उस संस्कृति को नष्ट किया जा रहा है.देश को लूटा जा रहा है.! भारतीय संस्कृति की सीता का हरण करने देखो साधू/अब नारी वेश में फिर आया रावण.दिन के प्रकाश में सबके सामने सफेद झूठ;और अंधकार में लुप्त सच्च की खोज में साक्षात्कार व सामूहिक महाचर्चा से प्रयास - तिलक.(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/ निशुल्क सदस्यता व yugdarpanh पर इमेल/ चैट करें,संपर्कसूत्र-तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611,9911145678,09540007993.

Sunday, March 28, 2010

विश्व गुरु भारत की पुकार:-विश्व कल्याण हेतु नेतृत्व करने में सक्षम हो ?

इसके लिए विश्व गुरु की सर्वांगीण शक्तियां जागृत हों ! इस निमित्त आवश्यक है अंतरताने के नकारात्मक उपयोग से बड़ते अंधकार का शमन हो, जिस से समाज की सात्विक शक्तियां उभारें तथा विश्व गुरु प्रकट हो! जब मीडिया के सभी क्षेत्रों में अनैतिकता, अपराध, अज्ञानता व भ्रम का अन्धकार फ़ैलाने व उसकी समर्थक / बिकाऊ प्रवृति ने उसे व उससे प्रभावित समूह को अपने ध्येय से भटका दिया है! दूसरी ओर सात्विक शक्तियां लुप्त /सुप्त /बिखरी हुई हैं, जिन्हें प्रकट व एकत्रित कर एक महाशक्ति का उदय हो जाये तो असुरों का मर्दन हो सकता है! यदि जगत जननी, राष्ट्र जननी व माता के सपूत खड़े हो जाएँ, तो यह असंभव भी नहीं है,कठिन भले हो! इसी विश्वास पर, नवरात्रों की प्रेरणा से आइये हम सभी इसे अपना ध्येय बनायें और जुट जाएँ ! तो सत्य की विजय अवश्यम्भावी है! श्रेष्ठ जनों / ब्लाग को उत्तम मंच सुलभ करने का एक प्रयास है जो आपके सहयोग से ही सार्थक /सफल होगा !
अंतरताने का सदुपयोग करते युगदर्पण समूह की ब्लाग श्रृंखला के 25 विविध ब्लाग विशेष सूत्र एवम ध्येय लेकर blogspot.com पर बनाये गए हैं! साथ ही जो श्रेष्ठ ब्लाग चल रहे हैं उन्हें सर्वश्रेष्ठ मंच देने हेतु एक उत्तम संकलक /aggregator है deshkimitti.feedcluster.com ! इनके ध्येयसूत्र / सार व मूलमंत्र से आपको अवगत कराया जा सके इस निमित्त आपको इनका परिचय देने के क्रम का शुभारंभ (भाग--१) युवादर्पण से करते हैं: -
युवा शक्ति का विकास क्रम शैशव, बाल, किशोर व तरुण!
घड़ा कैसा बने?-इसकी एक प्रक्रिया है. कुम्हार मिटटी घोलता, घोटता, घढता व सुखा कर पकाता है! शिशु,युवा,बाल,किशोर व तरुण को संस्कार की प्रक्रिया युवा होते होते पक जाती है! राष्ट्र के आधार स्तम्भ, सधे हाथों, उचित सांचे में ढलने से युवा समाज व राष्ट्र का संबल बनेगा: यही हमारा ध्येय है!
"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है!
इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!"
YuvaaDarpan.blogspot.com

Monday, March 15, 2010

नव संवत 2067 की शुभकामनाएं.

अंग्रेजी का नव वर्ष भले हो मनाया,
उमंग उत्साह चाहे हो जितना दिखाया;
विक्रमी संवत बढ़ चढ़ के मनाएं,
चैत्र के नव रात्रे जब जब आयें;
घर घर सजाएँ उमंग के दीपक जलाएं,
खुशियों से ब्रहमांड तक को महकाएं.
यह केवल एक कैलेंडर नहीं प्रकृति से सम्बन्ध है,
इसी दिन हुआ सृष्टि का आरंभ है.
युगदर्पण परिवार की ओर से अखिल विश्व में फैले  हिन्दू समाज सहित,चरअचर सभी के लिए गुडी
पडवा, उगादी,नवसंवत 2067 की शुभकामनाएं.
HAPPY UGADI TO YOU ALL
Ugadi marks the beginning of a new Hindu lunar calendar. Celebrated mostly in Andhra Pradesh and Karnataka, it is a day when mantras are chanted and predictions are made for the new year. The most important part is Panchanga Shravanam - hearing of the Panchanga. The Panchanga Shravanam is usually done at the temples by priests. Before reading out the annual forecasts as predicted in the Panchanga, the officiating priest reminds the participants of the creator, Brahma, and the span of creation of the universe.Kavi Sammelanam (poetry recitation) is a typical Ugadi feature. A literary feast for poets and public alike, many new poems written on subjects as varied as Ugadi, politics, modern trends and lifestyle are presented. Kavi Sammelanam is also a launch pad for budding poets. And is usually carried live on All India Radio's Hyderabad 'A' station and Doordarshan, Hyderabad following 'panchanga sravanam' (New Year calendar).
The tastes of Ugadi are actually 6,
Neem Buds/Flowers for BitterRaw Mango for TangyTamarind Juice for SourGreen Chilli for HotJaggery for SweetPinch of Salt for Salt
which symbolizes the fact that life is a mixture of different expereinces (sadness, happiness, anger, fear, disgust, surprise) , which should be accepted together and with equanimity.
HAPPY UGADI TO YOU ALL
तिलक संपादक युगदर्पण. .
(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpanh पर इमेल/चैट करें, संपर्कसूत्र-09911111611,9911145678,9540007993. www.bharatchaupal.blogspot.com/ www.deshkimitti.blogspot.com

Sunday, February 28, 2010

होली है.....! उल्लास का पर्व है, हुडदंग नहीं,उल्लास और शालीनता से मनाएं; अखिल विश्व में विराजे हिन्दुओं को युगदर्पण परिवार की ओर से, सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनायें !!


तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611, (yugdarpanh@gmail/yahoo.com